कारगिल के जवानों को समर्पित नीता चमोला की यह कविता- CCDA
मातृभूमि के लिए बलिदान
मातृभूमि के लिए बलिदान
मैं मेहंदी से रंगे हाथों को, पीछे छोड़ आया हूं।
जिंदगी भर साथ निभाने का वादा तोड़ आया हूं।
वो हसीन खुशनुमा लम्हे आगोश में लेकर,
अपने वतन के लिए तिरंगा आगोश में ले आया हूं।
किसी के गजरे की भीनी खुशबू को पीछे छोड़ आया हूं।
मातृभूमि के लिए,अपनों को छोड़ आया हूं।
विदाई देती नम मूक आंखो से,मुंह मोड़ आया हूं।
अपने देश की खातिर, अपनों को ही छोड़ आया हूं।
तुमसे बेपनाह मोहब्बत करता हूं मैं,
वतन से मोहब्बत करने चला आया हूं मैं।
तुम्हें हंसी सपनों का वादा दिए ,
सरहद पर वादा निभाने चला आया हूं मैं।
चांदनी रात में वो हसीन लम्हों की यादें,
ख्वाबों के तारों का गुलदस्ता लिए,
ख्वाहिशों को बादलों में लपेटे हुए,
तिरंगे पर कुर्बान होने चला आया हूं मैं।
ऐ चांद तू इधर भी है उधर भी, मुझेअपनी चांदनी से न जला,
कतरा कतरा लहू बह रहा है, सांसे छोड़ प्रिये मैं तुमसे दूर चला।
इन सर्द बर्फ की वादियों में मैंने तुम्हें पुकारा है,
न सुन सका कोई मेरी दर्द भरीआखिरी पुकार,
इन पहाड़ों से टकराकर,तन्हा दिल में वापस आ गई।
खुशनसीब हूं मेरी कुर्बानी देश के काम आ गई।
ये सर्द हवाएं, चांद ,तारे,
साक्षी रहेंगे हमारे प्यार की।
मेरे हमदम ,मेरे हसीन हमसफर,
मेरी छोटी सी जिंदगी थी उधार की।
दुख है मुझे साथ ना निभा पाया तुम्हारा,
अगले जन्म में शायद मिलूंगा दुबारा।
मेरी बुझती हुई सांसों,मैं तिरंगा न झुकने दूंगा। सीने में खाकर गोली, तिरंगे में लिपट जाऊंगा। खुशनसीब हूं मैं, न्यौछावर हुआ वतन पर,
लहू की कुर्बानी देकर,मैं अमर हो जाऊंगा।
शहीदों के लहू से सिंचती हैं ये तन्हा वादियां,
वंदे मातरम की गूंज से गूंजती रहें ये सर्द वादियां,
प्यारे वतन तुझ पर न कोई आंच आये,
वतन के लिए कई जन्म कुर्बान हो जाएं।
वतन के लिए कई जन्म कुर्बान हो जाएं।
नीता चमोला