ध्यान के मेरे अनुभव-भाग 3

(MY EXPERIENCE OF MEDITATION–PART 3)

महादेव की कृपा, पशुपतिनाथ
से साक्षात्कार
विचित्र अनुभव

मित्रों, महादेव क्या-क्या लीलाएं कर जाते हैं ? इंसान की समझ के बाहर है। आज मैं अपने एक ऐसे ही अनुभव को साझा करने जा रहा हूं।

18 फरवरी , 2023 को मैं अपनी पत्नी के साथ काठमांडू , नेपाल पहुंचा । वह महाशिवरात्रि का पावन दिन था। सारे रास्ते पशुपतिनाथ जी के भक्तों से भरे पड़े थे, जिसमें भारत से आए सैकड़ों नागा साधु और संत भी थे । इतनी भीड़ में दर्शन पाना तो संभव ही नहीं था, इसलिए हमने अगले दिन आने का निर्णय किया।
हम सोमवार ( जो महादेव का दिन भी माना जाता है ) सवेरे 5:30 बजे मंदिर पहुंचे । मंदिर का प्रांगण भक्तों और साधु-संतों से खचाखच भरा था। श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें दर्शन के लिए लालायत थी। हम भी पूजा का सामान एक छोटी सी टोकरी में डाले लाइन में खड़े हो गए और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। मंदिर में प्रवेश करते ही मानो मुझे अंदर से किसी अलौकिक शक्ति का एहसास होने लगा और मेरा रोम रोम ध्यान मग्न होने लगा। मेरा पूरा शरीर एक अद्भुत कंपन से ऊर्जावान हो कर आनंदित सा होने लगा। मैं स्वत: ही जागृत होते हुए धीरे-धीरे ‌ ध्यान की अवस्था में पहुंच गया। मुझे मानो न तो भीड़ का एहसास था और न ही आसपास के शोरगुल का । मैं सिर्फ महादेव में लीन धीरे-धीरे आगे बढ़ता जा रहा था। मेरी आंखें नम थीं और कभी-कभी आंसू भी बहते जा रहे थे और जैसे ही पशुपति नाथ जी के दर्शन का समय आया, हमने बस क्षण भर पशुपतिनाथ जी को देखा ही था और हम उनके ठीक से दर्शन कर पाते कि तुरंत सुरक्षाकर्मी ने हमें आगे बढ़ने को कह दिया।
मैं मन ही मन बहुत दुखी और व्यथित था। मेरी आंखों में आंसू आ गए और मैंने स्वयं ही भगवान से कहा ,

“हे पशुपतिनाथ! आपके दर्शन तो हुए ही नहीं।”

तभी अचानक मेरे कानों में आवाज आई मानो कोई कह रहा हो,

” पीछे के रास्ते से आ जाओ”।

मैंने देखा कि मैं जिस स्थान पर खड़ा था, वहां से सीधा रास्ता पीछे से मंदिर में जा रहा था ।मैंने अपनी पत्नी से कहा कि चलो हम इस पीछे के रास्ते से चलते हैं। कुछ ही समय में हम दिव्य पशुपतिनाथ जी के ठीक सामने खड़े थे ।मेरी पत्नी दर्शन करने के बाद आगे बढ़ गई ,पर मैं एक टक बिना पलक झपकाए अपने आराध्य को देख रहा था। मेरी आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे और बाहर का कुछ भी शोर सुनाई नहीं दे रहा था। मैंने मन ही मन कहा,

“हे प्रभु! आप से मुलाकात तो हुई ही नहीं, कैसे जाऊं?”

मैंने ऐसा कहा ही था कि एक पुजारी अंदर से आया और उसने रुद्राक्ष की एक माला मेरे गले में डाल दी ।मैं फिर भी वहां से नहीं हट पाया । न जाने क्यों मेरा आगे बढ़ने का मन ही नहीं कर रहा था ।पुजारी बार-बार आगे बढ़ने को कहते जा रहे थे, पर मेरे पांव मानो अंगद की भांति वहां जम से गए थे। मन ही मन मैं पशुपतिनाथ जी से संवाद करता जा रहा था,

“प्रभु!मैं इतनी दूर से आपके दर्शन के लिए आया हूं,आपको छुए बिना मैं कैसे जाऊं?”

मेरा यह कहना था कि एक पुजारी अंदर से आया और उसने पशुपतिनाथ जी के माथे पर लगे तिलक का टीका मेरे माथे पर लगा दिया और साथ में बेलपत्र देते हुए बोला,

“लगता है पशुपति नाथ से मिलने बड़ी दूर से आए हो।”

मुझे ऐसा लगा मानो पुजारी ने मेरे मन की बात को भांप लिया था। महादेव के माथे पर लगे तिलक को अपने माथे पर पाकर मैं तो मानो धन्य सा हो गया। मेरे पूरे शरीर में एक अद्भुत ऊर्जा मानों वेग से प्रवाहित होने लगी और मेरा पूरा शरीर ध्यान करने की ऊर्जा और प्रेरणा से रोमांचित हो उठा।
मेरे मन में बस अब एक तीव्र इच्छा जागृत हो रही थी कि किसी भी तरह मुझे बैठने के लिए एक स्थान मिल जाता और मैं वहां प्रभु की साधना में लीन हो जाता! बहुत ढूंढने के बाद भी जन सैलाब इतना था कि बैठने के लिए कहीं जगह ही नहीं मिली।

महादेव की भक्ति में लीन मैं भूख प्यास से अनभिज्ञ महादेव के दूसरे रूप डोलेश्वर महादेव जी के मंदिर में चला गया। यह शिव मंदिर नेपाल के भक्तपुर जिले के दक्षिण पूर्वी भाग सूर्य विनायक में स्थित है और माना जाता है कि यह भारत के उत्तराखंड में स्थित केदार नाथ मंदिर का शीर्ष भाग है। मेरे शरीर में अब भी वही अद्भुत ध्यान की तरंगें और ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी। मेरा मन और आत्मा सिर्फ महादेव के ध्यान में लीन था ।अब मैं डोलेश्वर महादेव के सम्मुख था और मन ही मन उनसे बातें कर रहा था। शिवरात्रि के कारण महादेव बहुत सुंदर सजे हुए थे। अंधेरे में दीपकों की लौ और धूप, फूल और चंदन की खुशबू से उनका दिव्य स्वरूप और भी निखर आया था। मैं एक टक उनके गेंदे की मालाओं से सुसज्जित दिव्य स्वरुप को निहार रहा था।

अनायास ही मंदिर के पुजारी ने भगवान के दिव्य स्वरूप से गेंदे की माला निकाल कर मेरे गले में डाल दी।

मैं बहुत भाव विभोर हो उठा और सोचने लगा कि बार-बार मैं भगवान से कुछ कहता हूं और वह बिन बोले ही स्वत: हो जाता है। मैं मन ही मन भगवान को धन्यवाद देने लगा।

अब हम भक्तापुर में स्थित एक ऊंची पहाड़ी पर बने हुए विशालकाय कैलाश नाथ महादेव जी की मूर्ति के दर्शन करने के लिए पहुंचे।यह मूर्ति संसार में सबसे ऊंची शंकर भगवान की मूर्ति है।

भगवान के ध्यान में लीन और विशालकाय सुंदर मूर्ति को देखकर मैंने मन ही मन भगवान से कहा,

“हे महादेव ! आज आपके इस रूप को देखकर मैं धन्य हो गया हूं बस मुझे भीमाशंकर का रूप भी दिखा दें।”

मैं तीन कदम नीचे सीढिओं से उतरा ही था कि एक शिवलिंग देखकर मैं रुक गया और उस पर लिखा था ,”भीमाशंकर”

मैं स्तब्ध और आनंदित सा होकर वही सीढिओं पर बैठ गया और भीमाशंकर जी के दिव्य रूप शिवलिंग को निहारने लगा।

ऐसा अनुभव मुझे बहुत सालों के बाद हो रहा था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानों मेरा शरीर भार रहित हो गया हो। एक असीम आनंद की अनुभूति लगातार हो रही थी।

महादेव की यह लीला और उनका मुझसे सीधा संवाद एक बहुत ही अद्भुत अनुभव था।

इसमें छिपे संदेश को मैं अवश्य पहचानूंगा क्योंकि मुझे अपने ईश्वर के निर्देश का पालन तो अवश्य ही करना है ।

जय महादेव
कर्नल ललित चमोला (रिटायर्ड)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top

Enquiry Know

Calculate Your Age To Current Date
Your Birth Date