जीवन और मृत्यु का फासला याद दिलाती एक मुलाकात।
आज 21 वर्षों का फासला कुछ पलों में सिमट गया, जब मुझसे मिलने आये सुबेदार विजय पाटिल। घटना अगस्त 2001की है जब जम्मू कश्मीर के एक आतंकवादी ऑपरेशन को मैं कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर लीड कर रहा था। हम पांच दहशतगर्दों को मार चुके थे, तभी मेरे बौडी गार्ड सिपाही विजय पाटिल ने मुझे जोर का धक्का दिया और मेरे उपर लेट कर फायरिंग करने लगा और थोड़ी देर में ही छठा और सातवां आतंकवादी भी मारा गया। विजय ने एक घायल दहशतगर्द को देख लिया था जो मुझे निशाने पर ले रहा था। मुझे बचाने के लिए उसने अपनी जान खतरे में डाल दी। मैं आज जीवित हूं तो इसका श्रेय विजय पाटिल को जाता है। उनके आने से मैं और मेरा घर धन्य महसूस कर रहे हैं।
भारतीय सैनिकों की जय हो।